उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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23 लेकिन जब वह संन्यास को ढोंग कहते हैं, तो ख़ुद क्यों संन्यास लिया है? ' 'उन्होंने संन्यास कब लिया है साहब, वह तो कहते हैं -- आदमी को अन्त तक ...

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